गांधी जी की याद

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एक लंबे अरसे बाद गांधी जी के बारे में चर्चा में हिस्सेदारी का अवसर मिला। चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र गोपेश्वर द्वारा गांधीजी की 150 जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित यात्रा में कुछ परिस्थितियों के कारण शामिल नहीं हो पाया था लेकिन उसके अंतिम दिवस को रुद्रप्रयाग जिले के कोठगी से समापन स्थल ककोड़ाखाल तक उसमें शामिल होने और कुछ कहने-सुनने का अवसर मिल गया। विद्यार्थियों, शिक्षकों और ग्रामीणों के साथ गांधी जी के संघर्षों और उपलब्धियों पर बात हुई। उनके आदर्श तो बहुत जरूरी थे लेकिन हम उन्हें याद क्यों नहीं रख पा रहे और अपने जीवन में उन्हें शामिल क्यों नहीं कर पा रहे, ये सवाल बहुत गंभीरता से उठे।
गांधी के बहुत से आदर्शों में से मुझे 3 बहुत जरूरी और व्यवहारिक भी लगते हैं- अहिंसा, आवश्यकताओं की सीमितता और सतत कर्मशीलता। ये शाश्वत और सर्वकालिक आदर्श हैं और प्रत्येक के लिए आवश्यक भी। इन्हें जीवन में उतार कर मानव, जो इस सृष्टि का सबसे बड़ा नायक है, इसे सदा-सर्वदा के लिए जीने योग्य बनाये रख सकता है। गांधी जी ने इन्हें न केवल अभिव्यक्त किया बल्कि जीवन का हिस्सा भी बनाया और इसी से वे दुनिया के तमाम आदर्शवादी व्यक्तित्वों से एकदम अलग और आगे खड़े दिखाई देते हैं। हमारे सभी भगवानों, देवताओं, अवतारों ने बुराई का नाश करने के लिए शक्ति का, शस्त्रों का सहारा लिया। समस्त सत्ता-संचालक शक्ति से नियमों-कानूनों की पालना करवाते आये हैं लेकिन गांधी ने इसे सबसे गैरजरूरी माना और उसका परित्याग करने का नारा दिया, स्वयं भी उसका कभी सहारा नहीं लिया। आत्मिक शक्ति से भी बड़े संघर्ष किये और जीते जा सकते हैं, यह गांधी की शिक्षा रही और उससे आजादी की लड़ाई लड़ कर भी उन्होंने दिखाई तथा विजय प्राप्त की। हमारी स्वतंत्रता का संग्राम इसलिए विशिष्ट रहा कि उसमें हिंसा और पाशविक शक्ति का निषेध रहा।
गांधी की दूसरी सबसे बड़ी सीख रही कि यह पृथ्वी इसमें रहने वाले प्रत्येक प्राणी की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता रखती है लेकिन तब, जबकि सभी प्राणी उतना लें, जितना उनकी आवश्यकता हो। पर्यावरण के असंतुलन के इस भीषण दौर में भारी सामाजिक और आर्थिक असमानता व असंतुलन के बीच भूख से मरने वालों की संख्या से अधिक उन लोगों की संख्या हो गई है, जो ज्यादा खा रहे हैं। यह स्थिति इस दुनिया को कहां ले जाने वाली है, यह भी बहुत अधिक सोचनीय है। अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर हम इस दुनिया को सबके रहने लायक बचाये व बनाये रख सकते हैं। जीने का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत यही है कि हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखते हुए केवल उतना ही उपभोग करें, जितने से हमारा जीवन व कार्य-क्षमता बनी रह सके।
प्रत्येक मनुष्य को अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करते हुए सतत कर्मशील रहना चाहिए- गांधी का यह आदर्श सबके लिए व्यवहार्य है। यद्यपि अब जीवन व जीविका की परिस्थितियों में भारी बदलाव आ गया है लेकिन फिर भी जितना संभव हो, हमें कर्मशील बने रहने का प्रयास करते रहना चाहिए।
गांधी जी की इन 3 प्रमुख सीखों को गांधी-यात्रा से जुड़े  सामाजिक कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के साथ साझा करते हुए यह प्रश्न स्वयं ही प्रासंगिक हो गया कि गांधी की बात, उनके चित्रों, प्रसंगों की पुनरावृत्ति का वास्तविक अर्थ और महत्व क्या है? गांधी के चित्र कागजों, मूर्तियों में न भी देखने को मिलें लेकिन नोटों पर तो घर-घर पहुँचे हुए हैं और हम उस नोट का मूल्य अवश्य देखते हैं लेकिन गांधी का चित्र देखने की न जरूरत समझते हैं और महत्व। अपने महापुरुषों के चित्रों से कभीकभार हम उनकी, उनके आदर्शों की याद भी कर लें तो उनकी सार्थकता कुछ अर्थों में अवश्य सिद्ध हो सकती है।
गांधी-यात्रा का समापन ककोड़ाखाल में करने का उद्देश्य भी स्वतंत्रता आंदोलन में उस स्थल के ऐतिहासिक गौरव का स्मरण करना-कराना भी था। 12 जनवरी 1921 के दिन इसी स्थान पर गढ़केसरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में तत्कालीन चमोली तहसील के दशजूला पट्टी व समीपवर्ती गाँवों के सैकड़ों लोगों ने अपनी जान की परवाह किये बगैर गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर पी मेसन को बेगार देने के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन किया था और मेसन को अपने दल-बल के साथ वहां से वापस भागना पड़ा था। आंदोलनकारियों ने उसके बाद अनेक प्रकार के दंड सहे लेकिन इस घटना ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई ऊर्जा प्रदान की और पूरा क्षेत्र इसमें निर्भीकतापूर्वक सम्मिलित हो गया था। उपस्थित लोगों ने उन वीर आंदोलनकारियों का नामोल्लेख करते हुए पुण्य स्मरण किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वहाँ स्थित स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। यात्रा का समापन दालचीनी के पौधे के रोपण से हुआ, जिसकी रक्षा व पोषण की जिम्मेदारी राजकीय हाईस्कूल ककोड़ाखाल के छात्र-छात्राओं ने ली।
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